असली विद्वान
Tue, 20 Aug 2024
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लेखक - डॉ. एस कुमार
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असली विद्वान
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एक राज्य में एक पंडितजी रहा करते थे. वे अपनी बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थे. उनकी बुद्धिमत्ता के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे.

एक दिन उस राज्य के राजा ने पंडितजी को अपने दरबार में आमंत्रित किया. पंडित जी दरबार में पहुँचे. राजा ने उनसे कई विषयों पर गहन चर्चा की. चर्चा समाप्त होने के पश्चात् जब पंडितजी प्रस्थान करने लगे, तो राजा ने उनसे कहा, “पंडितजी! आप आज्ञा दें, तो मैं एक बात आपसे पूछना चाहता हूँ.”

पंडित ने कहा, “पूछिए राजन.”

“आप इतने बुद्धिमान है पंडितजी, किंतु आपका पुत्र इतना मूर्ख क्यों हैं?” राजा ने पूछा.

राजा का प्रश्न सुनकर पंडितजी को बुरा लगा. उन्होंने पूछा, “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं राजन?”

“पंडितजी, आपके पुत्र को ये नहीं पता कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है.” राजा बोला.

ये सुनकर सारे दरबारी हँसने लगे.

सबको यूं हँसता देख पंडितजी ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया. किंतु वे बिना कुछ कहे अपने घर लौट आये.

घर पहुँचने पर उनका पुत्र उनके लिए जल लेकर आया और बोला, “पिताश्री, जल ग्रहण करें.”

उस समय भी सारे दरबारियों की हँसी पंडितजी के दिमाग में गूंज रही थी. वे अत्यंत क्रोध में थे. उन्होंने जल लेने से मना कर दिया और बोले, “पुत्र, जल तो मैं तब ग्रहण करूंगा, जब तुम मेरे इस प्रश्न का उत्तर दोगे.”

“पूछिये पिताश्री.” पुत्र बोला.

“ये बताओ कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है?” पंडितजी ने पूछा.

“सोना अधिक मूल्यवान है.” पुत्र के तपाक से उत्तर दिया,

पुत्र का उत्तर सुनने के बाद पंडितजी ने पूछा, “तुमने इस प्रश्न का सही उत्तर दिया है. फिर राजा तुम्हें मूर्ख क्यों कहते हैं? वे कहते हैं कि तुम्हें सोने और चाँदी के मूल्य का ज्ञान नहीं है.”


पंडितजी की बात सुनकर पुत्र सारा माज़रा समझ गया. वह उन्हें बताने लगा, “पिताश्री! मैं प्रतिदिन सुबह जिस रास्ते से विद्यालय जाता हूँ, उस रास्ते के किनारे राजा अपना दरबार लगाते हैं. वहाँ ज्ञानी और बुद्धिमान लोग बैठकर विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं. मुझे वहाँ से जाता हुआ देख राजा अक्सर मुझे बुलाते है और अपने एक हाथ में सोने और एक हाथ में चाँदी का सिक्का रखकर कहते हैं कि इन दोनों में से तुम्हें जो मूल्यवान लगे, वो उठा लो. मैं रोज़ चाँदी का सिक्का उठाता हूँ. यह देख वे लोग मेरा परिहास करते हैं और मुझ पर हँसते हैं. मैं चुपचाप वहाँ से चला जाता हूँ.”

पूरी बात सुनकर पंडितजी ने कहा, “पुत्र, जब तुम्हें ज्ञात है कि सोने और चाँदी में से अधिक मूल्यवान सोना है, तो सोने का सिक्का उठाकर ले आया करो. क्यों स्वयं को उनकी दृष्टि में मूर्ख साबित करते हो? तुम्हारे कारण मुझे भी अपमानित होना पड़ता है.”

पुत्र हँसते हुए बोला, “पिताश्री मेरे साथ अंदर आइये. मैं आपको कारण बताता हूँ.”

वह पंडितजी को अंदर के कक्ष में ले गया. वहाँ एक कोने पर एक संदूक रखा हुआ था. उसने वह संदूक खोलकर पंडितजी को दिखाया. पंडितजी आश्चर्यचकित रह गए. उस संदूक में चाँदी के सिक्के भरे हुए थे.

पंडितजी ने पूछा, “पुत्र! ये सब कहाँ से आया?”

पुत्र ने उत्तर दिया, “पिताश्री! राजा के लिए मुझे रोकना और हाथ में सोने और चाँदी का सिक्का लेकर वह प्रश्न पूछना एक खेल बन गया है. अक्सर वे यह खेल मेरे साथ खेला करते हैं और मैं चाँदी का सिक्का लेकर आ जाता हूँ. उन्हीं चाँदी के सिक्कों से यह संदूक भर गया है. जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया. उस दिन ये खेल बंद हो जायेगा. इसलिए मैं कभी सोने का सिक्का नहीं उठाता.”

पंडितजी को पुत्र की बात समझ तो आ गई. किंतु वे पूरी दुनिया को ये बताना चाहते थे कि उनका पुत्र मूर्ख नहीं है. इसलिए उसे लेकर वे राजा के दरबार चले गए. वहाँ पुत्र ने राजा को सारी बात बता दी है कि वो जानते हुए भी चाँदी का सिक्का ही क्यों उठाता है.

पूरी बात जानकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ. उसने सोने के सिक्कों से भरा संदूक मंगवाया और उसे पंडितजी के पुत्र को देते हुए बोला “असली विद्वान तो तुम निकले.”

मित्रों" *कभी भी अपने सामर्थ्य का दिखावा मत करो. कर्म करते चले जाओ. जब वक़्त आएगा, तो पूरी दुनिया को पता चल जायेगा कि आप कितने सामर्थ्यवान हैं. उस दिन आप सोने की तरह चमकोगे और पूरी दुनिया आपका सम्मान करेगी*।

धन्यवाद।।

लेखक - डॉ. एस कुमार
 
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