कर्म और दौलत
Tue, 20 Aug 2024
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लेखक :- डॉ. एस कुमार
एक बार की बात है, कर्म(भाग्य) और दौलत की आपस मे बहस हो गई। दौलत कहती है कि मैं बडी हू, किसी को कुछ भी बना सकती हू। और कर्म कहता है कि मेरे बिना दौलत किसी काम की नही। दौलत कहती है कि चलो देखते है, कि कौन बडा है। कर्म भी मान गया और दोनो चल पडे।
जंगल में एक बहुत गरीब आदमी लकडी काट रहा था। दौलत उस के पास गई, और एक थैली सोने की मोहरो की उस को दे दी। वो आदमी बहुत खुश हुआ। और घर को चल पडा, घर पहुंचा तो घर के गेट का दरवाजा बंद था। उस ने वह थैली दीवार पर रखी और दरवाजा खोलने लगा। दरवाजा खुलते ही वो अन्दर चला गया और मोहरो की थैली दीवार पर ही भूल गया। वो मोहरे वहां से पडोसी ने उठा ली। सोने की मोहरे खो देने से वह बहुत दुखी हुआ और अगले दिन फिर वो आदमी लकडी काटने चला गया।
दौलत फिर उस के पास गई। और उस को एक हीरा दिया।
उस ने वह हीरा जेब में डाला और वहां से चल पडा। रास्ते मे उस को बहुत प्यास लगी, वो एक झरने के किनारे बैठ कर पानी पीने लगा। तो वह हीरा पानी मे गिर गया, और एक मछली के पेट मे चला गया। वो आदमी हीरा खो देने से बहुत उदास हो कर वहां से घर चला गया।
अगले दिन फिर वो लकडी काटने गया, अब कर्म ने दौलत से कहा कि तुमने दो बार कोशिश की अब मैं कोशिश करता हूँ। देखना इस के कैसे नसीब खुलते है।
कर्म(भाग्य) ने उस आदमी को 2 पैसे दिए। आदमी बहुत खुश हुआ और वह घर को चल पडा। और रास्ते मे सोचता है, कि दाल से रोटी रोज खाते है। आज मछली से खाते है, उस ने बाजार से मछली खरीदी। और घर जा कर जब मछली काटी तो उस मे से हीरा निकला। हीरा देख कर वह बहुत खुश हुआ और चिल्लाने लगा। कि मिल गया, मिल गया, पडोसी ने यह सुना। और सोचा कि शायद इसे पता चल गया है, कि वो मोहरे की थैली मेरे पास है। उस ने वो थैली उस आदमी के घर फैक दी। उस आदमी को वह थैली भी मिल गई। वह बहुत खुश हुआ, और परमात्मा का शुक्र किया।
कर्म (भाग्य)जीत गया और दौलत हार गई।
शिक्षा:-
भाग्य से अधिक कभी किसी को मिल नहीं सकता और भाग्य कोई किसी का छीन नहीं सकता।
होनी को कोई टाल नहीं सकता और होनी हो कर रहती है।
भाग्य दुआओं से बनता है।
दुआएं आशीर्वाद और दूसरों की मदद करने से मिलती हैं।
तो दौलत बड़ी या कर्म(भाग्य)
!धन्यवाद !
लेखक :- डॉ. एस कुमार