ठाकुर जी के चरणों में
Tue, 20 Aug 2024
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लेखक :- Dr. S. Kumar

किसी आयुर्वैदिक संस्थान से रिटायर होकर एक वैद्य जी अपनी पत्नी से बोले:-
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आज तक मैं संसार में रहा अब ठाकुर जी के चरणों में रहना चाहता हूं। तुम मेरे साथ चलोगी या अपना शेष जीवन बच्चों के साथ गुजारोगी।
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पत्नी बोली:- "चालीस वर्ष साथ रहने के बाद भी आप मेरे ह्रदय को नहीं पहचान पाए मैं आपके साथ चलूंगी।"
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वैद्य जी बोले:- "कल सुबह वृन्दावन के लिए चलना है।" अगले दिन सुबह दोंनो वृन्दावन जाने के लिए तैयार हुए।
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अपने बच्चों को बुलाया और कहा:- "प्यारे बच्चों हम जीवन के उस पार हैं तुम इस पार हो।
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आज से तुम्हारे लिए हम मर गए और हमारे लिए तुम। तुमसे तो हमारा हाट बाट का साथ है। असली साथी तो सबके श्री हरि ही है।
वृन्दावन आए तो दैवयोग से स्वामी जी से भेंट हुई। उन्होंने गुजारे लायक चीजों का इन्तजाम करवा दिया।
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दोंनो का आपस में बोलना चालना भी कम हो गया केवल नाम जाप में लगे रहते और स्वामी जी का सत्संग सुनते।
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जैसा कुछ ठाकुर जी की कृपा से उपलब्ध होता बनाते पकाते और प्रेम से श्री हरि जी को भोग लगाकर खा लेते।
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किन्तु अभाव का एहसास उन्हें कभी नहीं हुआ था।
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जाड़े का मौसम था। तीन दिन से दोंनो ने कुछ नहीं खाया था। भूख और ठंड खूब सता रही थी।
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अचानक दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी... वैद्य जी ने उठ कर दरवाजा खोला सामने एक किशोरी खड़ी थी बोली:-
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"स्वामी जी के यहां आज भंडारा था उन्होंने प्रशाद भेजा है।"
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वैद्य जी ने प्रशाद का टिफिन पकड़ा तभी एक किशोर अंदर आया और दोनों के लिए गर्म बिस्तर लगाने लगा।
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वैद्य जी की पत्नी बोली:- ध्यान से बच्चों हमारे यहां रोशनी का कोई प्रबंध नहीं है। कहीं चोट न लग जाए।
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इतने में किशोर बाहर गया और मोमबत्तियों का डिब्बा और दिया सलाई लेकर आ गया। कोठरी में रोशनी कर दोनों चले गए।
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दोनों ने भर पेट खाना खाया और गर्म बिस्तर में सो गए।

अगले दिन स्वामी जी का टिफिन वापिस करने गए तो उन्होंने कहा:- "टिफिन तो हमारा है पर यहां कल कोई भंडारा नहीं था और न ही उन्होंने कोई प्रशाद या अन्य सामान भिजवाया है।"
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यह सुनकर दोनों सन्न रह गए। वह समझ गए ये सब बांके बिहारी जी की कृपा है।
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दोनों को बहुत ग्लानि हो रही थी प्रभु को उनके कष्ट दूर करने स्वयं आना पड़ा।

!!धन्यवाद!!

लेखक :- Dr. S. Kumar

 
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