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लेखक :- डॉ.एस कुमार___________________
महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद !‼️
श्रीकृष्ण द्वारका जा रहे थे। तभी मार्ग में उनकी भेंट उत्तंग मुनि से हुई। युद्ध की घटना से अनजान उत्तंग मुनि ने जब श्रीकृष्ण से हस्तिनापुर की कुशलता पूछी, तो उन्होंने उन्हें कौरवों के नाश का समाचार सुनाया। यह सुनकर उत्तंग मुनि ने क्रोध में कहा, “वासुदेव! यदि आप चाहते, तो यह विनाश रुक सकता था। मैं आपको अभी शाप दूंगा।” श्रीकृष्ण बोले, “मुनिवर! पहले आप शांतिपूर्वक मेरा पक्ष सुन लें, फिर चाहें तो शाप दे दें।
यह कहकर श्रीकृष्ण ने उत्तंग मुनि को अपना विराट रूप दिखाया और धर्म की रक्षा के लिए कौरवों के नाश की आवश्यकता बताई। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने उनसे वर मांगने को कहा। मुनि बोले, “जब भी मुझे प्यास लगे, जल तत्काल मिल जाए।” श्रीकृष्ण वर देकर चले गए। एक दिन वन में उत्तंग मुनि को बड़ी प्यास लगी। तभी वहां मैले-कुचैले वस्त्रों में एक चांडाल दिखाई दिया। वह हाथ में धनुष और पानी की मशक लिए हुए था। वह मुनि को देखकर बोला, “लगता है, आप प्यासे हैं। लीजिए, पानी पी लें।” यह कहकर उसने मशक का मुंह आगे कर दिया। लेकिन घृणा के कारण मुनि ने जल नहीं पिया। उन्हें श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए वर के इस स्वरूप पर भी क्रोध आया। तभी वह चांडाल हंसते हुए अंतर्धान हो गया। उत्तंग मुनि को एहसास हुआ कि उनकी परीक्षा ली गई है। तभी वहां श्रीकृष्ण प्रकट हो गए। उत्तंग मुनि ने उनसे कहा, “प्रभु! आपने मेरी परीक्षा ली। मैं ब्राह्मण होकर चांडाल की मशक का जल कैसे पीता?” श्रीकृष्ण ने कहा, “आपने जल की इच्छा की, तो मैंने इंद्र से आपको अमृत पिलाने को कहा। मैं निश्चित था कि आप जैसा ज्ञानी ब्राह्मण एवं चांडाल के भेद से ऊपर उठ चुका होगा और आप अमृत प्राप्त कर लेंगे। परंतु आपने मुझे इंद्र के सामने लज्जित किया।” यह कहकर श्रीकृष्ण अंतर्धान हो गए। यथार्थ ज्ञान होने पर जाति और वर्ण का कोई भेद नहीं रह जाता। समत्व के ज्ञान से पूर्व व्यक्ति प्राप्त हो रहे अमृत को भी नहीं ग्रहण कर पाता।
लेखक :- डॉ.एस कुमार