बहुरिया
Tue, 20 Aug 2024
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लेखक :- डॉ.एस कुमार
कुछ महीने पहले ही ब्याह कर आई घर भर की चहेती बन चुकी बहू से आज अचानक अपने मायके पधारी बुआ सास पूछ बैठी।
"कितना पढ़ी हो बहुरिया?"बी.ए.पास हूँ बुआ जी!"
रोटी बनाने के लिए गूंथे हुए आटे में से छोटी सी लोई ले अपनी हथेलियों से गोल आकार देती बहुरिया को आज बात-बात पर कमी निकालने वाली बुआ के चेहरे पर पहली बार मुस्कान दिखी।
"कितने साल लगे बी.ए. तक की पढ़ाई करने में?"
बुआ वही पड़ी मचिया खींच आज नई बहू का आकलन करने बैठ गई।
"पूरे सत्रह बरस लगे बुआ जी!"
"सत्रह साल!" मानो बुआ को तो विश्वास ही नहीं हुआ।
इधर लोई को चकले पर रख धीरे-धीरे सधे हाथों से बेलन चलाती बहुरिया मुस्कुराई।
"इससे आगे भी कोई पढ़ाई होती है क्या बहुरिया?" बुआ की जिज्ञासा चरम पर पहुंची।
"होती है ना बुआ जी!.एम.ए, एमफिल, पीएचडी।"
चकले पर बराबर गोल आकार ले चुकी रोटी को बड़े जतन से हाथों में उठा तनिक सहला कर तवे पर रखती बहुरिया ने उन्हें उच्च शिक्षा की जानकारी से अवगत कराया।
"अच्छा बहुरिया!.वह कौन सी पढ़ाई होती है.जिसे करने के बाद औरत को रोटी-बेलन से छुटकारा मिल जाता है?"
"बुआ जी ऐसी तो कोई पढ़ाई नहीं होती।" गर्म तवे पर रोटी को उलट-पुलट करती बहुरिया को तनिक हैरानी हुई।
"ऐसे कैसे नहीं होती?.जरूर होती होगी!" बुआ अपनी बात पर अड़ गई।
"सच्ची बुआ जी!.ऐसी कोई पढ़ाई नहीं होती है।"
"फिर औरत का अपना इतना वक्त पढ़ाई कर बर्बाद करने का क्या फायदा?" तीर निशाने पर लगा देख बुआ मुस्कुराई।
"फायदा तो बहुत है बुआ जी।"
चूल्हे की आग से प्रदीप्त बहुरिया के चेहरे पर नजरें गड़ाए बुआ उसके तनिक करीब हो आई।
"अच्छा!.जरा मुझे भी बता।"
"वो क्या है ना बुआ जी कि,.पढ़-लिखकर औरत समझदार हो जाती हैं और वो अपने परिवार को खिलाने के लिए रोटी मजबूरी में नहीं!.शौक से बनाती है।"
फुली हुई रोटी तवे पर से उतारती बहुरिया खिलखिलाई और गुणवती बहुरिया के इस बात से #सहमत बुआ चुप्पी साध गई।
धन्यवाद।
लेखक :- डॉ.एस कुमार