उम्मीद
Sun, 25 Aug 2024
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उम्मीद
हाड़ कँपाती सर्दियों की उस रात उसने खुद से कहा ,"दो महीने की बात है ,गर्मी आ जाएगी !"तन मन को झुलसाती जून की दुपहरी में रोजी रोटी के लिए मशक्कत करते फिर उसने खुद से कहा "एक महीने की बात है बरसात आ जाएगी !" बरसात की उस मार से अधमरी हो चुकी अपनी टपरी की छत और दलदली हो चुके फर्श को देखकर कहने लगा ..."बरसात का मौसम अब बचा ही कितना है ?इसको भी रुकना ही है !बरसात का मौसम खत्म भी हुआ ! अचानक ध्यान आया ...अरे आज तो जन्म दिन है उसका ! अड़सठ का हो गया हूँ !मुस्कुरा कर आज खुद से फिर कहा ..."जब इतनी कट गई है ...आगे भी कटनी ही है !
कृष्णा नन्द शर्मा
लेखक :- डॉ.एस कुमार