भाई शिवराम भाऊ को झाँसी की सूबेदारी दे दी
Tue, 20 Aug 2024
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लेखक :- डॉ. एस कुमार________________________________


🔶छत्रसाल के दो पुत्र थे-जगतराज देव और हरदेव । इसी कारण उसने अपने राज्य के तीन भाग किये और उसमें से एक बाजीराव को दिया ।

🔶गोविन्द पन्त बुन्देले पानीपत की लड़ाई में नजीबखां रहेले के हाथ से मारे गये। इनके दो पुत्र थे, जिन्होंने कुछ दिनों तक कालपीमें राज्य किया । इनके वंशज अब तक गुलसराय ( संयुक्तप्रांत, ज़िला झाँसी) में विद्यमान हैं उनको अंग्रेज सरकार ने अनुमान ३ लाखका इलाका खाने के लिये छोड़ रक्खा है ।बाजीराव के पास एक यवन-बेश्या थी । उसका नाम मस्तानी था । उससे बाजीराव का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शमशेर बहादुर रक्खा गया । बाँदा और कालपी का इलाक़ा इसी शमशेर बहादुर के अधीन किया गया था। वह सन् १८१६ तक बराबर इसी के वंशजों के अधीन रहा। सन् १८१७ ईस्वी में बाँदा का राज्य अंग्रेज सरकार ने अपने राज्य में मिला लिया और उसके बदले में ४ लाख सालाना पेंशन नियत कर दी । शमशेर- बहादुर के वंशज अब तक इंदौर में मौजूद हैं, जिन्हें १३ हज़ार सलाना पेंशन सरकार से मिलती है ।

🔶पेशवाई के समय के इतिहास को बहुत कुछ पढ़ने पर भी यह स्पष्ट प्रकट नहीं होता कि झाँसी की सूबेदारी पर पहले पहल कौन नियत हुआ। हाँ, इस बात का पता लगता है कि पहले गङ्गाधर पन्त झाँसी के सूबेदार नियत हुए, पश्चात् गोविंद पंत बुन्देले । उनके बाद सन् १७४२ ईस्वी में नारोशंकर सूबेदार नियत होकर आये। सन् १७५७ में पेशवा ने नारोशंकर को वापस बुला कर महदाजी गोविन्द को भेजा । उन्होंने रुहेलखंड को भी अपने अधिकार में कर लिया । वे वहाँ केवल दो वर्ष तक रहे । उनके पश्चात् रघुनाथ हरी नेवालकर सूबेदार होकर आये। सन् १८५७ ईस्वी तक इन्हीं के वंशधर झाँसी में राज्य करते रहे । पहले कुछ दिनों तक इनके वंश के लोग पेशवाओं के कुछ-कुछ अधीन रहे; परन्तु कुछ दिनों के बाद वे बिलकुल स्वाधीन राजा हो गये ।


🔶रघुनाथ हरी ने जब अपना बल और पराक्रम वृद्धावस्था के कारण कम होते देखा तब उन्होंने अपने भाई शिवराम भाऊ को झाँसी की सूबेदारी दे दी, और आप काशीजी जाकर ईश्वर चिंतन में निमग्न हुए। वे वहाँ १७९६ ईस्वी में स्वर्गधाम पधारे । उस समय पूना में पेशवा की गद्दी पर द्वितीय बाजीराव विराजमान थे । उनके शासन काल में सम्पूर्ण महाराष्ट्र देश में अव्यवस्था और अंधेर हो रहा था। सब मरहठे सरदार स्वतंत्र होने का उद्योग कर रहे थे ।

🔶इस परिस्थिति से अंग्रेजो ने भी अपना कुछ लाभ कर लेने का उद्योग आरंभ किया। लेक साहब ने झाँसी के सूबेदार शिवराव भाऊ और बिृटिस सरकार मे एक नूतन सन्धि स्थापित की । तारीख ६ फरवरी सन् १८०४ को जो संधि-पत्र हुआ उसमे यह लिखा है कि शिवराव भाऊ और ब्रिटिश सरकार मित्र हैं । संकट समय में उन्हे परस्पर सहायता करनी चाहिए । इनकी मित्रता को देख बुंदेलखंड के अन्यान्य राजा लोग भी ब्रिटिश सरकार के आश्रय में रहने की इच्छा प्रकट करने लगे। यथार्थ में इन्हीं के समय मे ब्रिटिश राज्य की जड़ बुन्द मजबूत हुई

🔷आगे की कड़ी दूसरे भाग में मिलेगी

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लेखक :- डॉ. एस कुमार
 
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