बड़े-बड़े ऋषि-मुनि एक जगह जुटे
Tue, 20 Aug 2024
101 Views

"

लेखक :- डॉ. एस कुमार



एक बार बड़े-बड़े ऋषि-मुनि एक जगह जुटे तो इस बात पर विचार होने लगा कि कौन सा युग सबसे बढिया है. बहुतों ने कहा सतयुग, कुछ त्रेता को तो कुछ द्वापर को श्रेष्ठ बताते रहे..जब एक राय न हुई यह तय हुआ कि जिस काल में कम प्रयास में ज्यादा पुण्य कमाया जा सके, साधारण मनुष्य भी सुविधा अनुसार धर्म-कर्म करके पुण्य कमा सके उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा..विद्वान आसानी से कभी एकमत हो ही नहीं सकते. कोई हल निकलने की बजाए विवाद और भड़क गया. सबने कहा झगड़ते रहने से क्या फायदा, व्यास जी सबके बड़े हैं उन्हीं से पूछ लेते हैं. वह जो कहें, उसे मानेंगे..सभी व्यास जी के पास चल दिए. व्यास जी उस समय गंगा में स्नान कर रहे थे. सब महर्षि के गंगा से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगे. व्यास जी ने भी सभी ऋषि-मुनियों को तट पर जुटते देखा तो एक गहरी डुबकी ली..जब बाहर निकले तो उन्होंने एक मंत्र बोला. वह मंत्र स्नान के समय उच्चMए जाने वाले मंत्रों से बिल्कुल अलग था. ऋषियों ने व्यास जी को जपते सुना- कलियुग ही सर्वश्रेष्ठ है कलियुग ही श्रेष्ठ..इससे पहले कि ऋषिगण कुछ समझते व्यास जी ने फिर डुबकी मार ली. इस बार ऊपर आए तो बोले- शूद्र ही साधु हैं, शूद्र ही साधु है. यह सुनकर मुनिगण एक दूसरे का मुंह देखने लगे..व्यास जी ने तीसरी डुबकी लगाई. इस बार निकले तो बोले- स्त्री ही धन्य है, धन्य है स्त्री. ऋषि मुनियों को यह माजरा कुछ समझ में नहीं आया. वे समझ नहीं पा रहे थे कि व्यास जी को क्या हो गया है. यह कौन सा मंत्र और क्यों ये मंत्र पढ रहे हैं..व्यास जी गंगा से निकल कर सीधे अपनी कुटिया की ओर बढे. उन्होंने नित्य की पूजा पूरी की. कुटिया से बाहर आए तो ऋषि मुनियों को प्रतीक्षा में बैठे पाए. स्वागत कर पूछा- कहो कैसे आए ?


.ऋषि बोले- महाराज ! हम आए तो थे एक समस्या का समाधान करवाने पर आपने हमें कई नए असमंजस में डाल दिया है. नहाते समय आप जो मंत्र बोल रहे थे उसका कोई गहरा मतलब होगा, हमें समझ नहीं आया, स्पष्ट बताने का कष्ट करें..व्यास जी ने कहा- मैंने कहा, कलयुग ही श्रेष्ठ है, शूद्र ही साधु हैं और स्त्री ही धन्य हैं. यह बात न तो बहुत गोपनीय है न इतनी गहरी कि आप जैसे विद्वानों की समझ में न आए. फिर भी आप कहते हैं तो कारण बता देता हूं..जो फल सतयुग में दस वर्ष के जप-तप, पूजा-पाठ और ब्रह्मचर्य पालन से मिलता है वही फल त्रेता में मात्र एक वर्ष और द्वापर में एक महीना जबकि कलियुग में केवल एक दिन में मिल जाता है..सतयुग में जिस फल के लिए ध्यान, त्रेता में यज्ञ और द्वापर में देवी देवताओं के निमित्त हवन-पूजन करना पडता है, कलियुग में उसके लिए केवल श्री नारायण का नापजप ही पर्याप्त है. कम समय और कम प्रयास में सबसे अधिक पुण्य लाभ के चलते मैंने कलयुग को सबसे श्रेष्ठ कहा..ब्राह्मणों को जनेऊ कराने के बाद कितने अनुशासन और विधि-विधान का पालन करने के बाद पुण्य प्राप्त होता है. जबकि शूद्र केवल निष्ठा से सेवा दायित्व निभा कर वह पुण्यलाभ अर्जित कर सकते हैं. सब कुछ सहते हुए वे ऐसा करते भी आए हैं इसलिए शूद्र ही साधु हैं..स्त्रियों का न सिर्फ उनका योगदान महान है बल्कि वे सबसे आसानी से पुण्य लाभ कमा लेती हैं. मन, वचन, कर्म से परिवार की समर्पित सेवा ही उनको महान पुण्य दिलाने को पर्याप्त है. वह अपनी दिन चर्या में ऐसा करती हैं इसलिए वे ही धन्य हैं..मैंने अपनी बात बता दी, अब आप लोग बताएं कि कैसे पधारना हुआ. सभी ने एक सुर में कहा हम लोग जिस काम से आये थे आपकी कृपा से पूरा हो गया..महर्षि व्यास ने कहा- आप लोगों को नदी तट पर देख मैंने अपने ध्यान बल से आपके मन की बात जान ली थी इसी लिए डुबकी लगाने के साथ ही जवाब भी देता गया था. सभी ने महर्षि व्यास की पूजा की और अपने-अपने स्थान को लौट गये ।। 🙏🏻🙏🏻

_खुश रहिए और मुस्कुराइए। जो प्राप्त है-पर्याप्त है जिसका मन मस्त है उसके पास समस्त है!!_

_आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! अपनी प्रतिक्रियाएँ हमें बेझिझक दें !!

▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬!! धन्यवाद !

लेखक :- डॉ. एस कुमार


 
Home
About
Blog
Contact
FAQ