झाँसी
Tue, 20 Aug 2024
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लेखक ::- डॉ. एस कुमार ━━━━━━━━━━━━━━━━

कुल-वृत्तान्त, जन्म, बाल्यावस्था, विवाह और झाँसी का वर्णन-४*━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🌹🌹जो गति ग्राह गजेन्द्र की, सो गति भई है आज । बाजी जात बुन्देल की, राखो बाजी लाज ।


*🔶इसके उत्तर में बाजीराव ने लिखा कि हम पूर्ण-रूप से आपकी धर्मरक्षा के निमित्त सहायता करेंगे । आप तो स्वयं वीर हैं । आप अकेले ही दिल्ली की बादशाहत को तहस नहस कर सकते हैं । पत्र के साथ एक दोहा भी उत्तर में भेजा हुआ लोग बतलाते हैं । वह दोहा यह है-

वे होंगे छत्तापता, तुम होगे छतसाल i वे दिल्ली की ढाल तू , दिल्ली ढाहनवाल ॥

🔶बाजीराव ने महाराज छत्रपति साहूजी से अनुमति लेकर अपनी सारी फौज साथ ली और बुन्देलखण्ड की ओर पयान किया। अनुमान २१-२२ दिनों में वे बुन्देलखण्ड जा पहुँचे । कई दिनों तक लड़ाई करने के बाद शाही फौज और मुहम्मद खाँ बंगस ने जब देखा कि मरहठों से मुकाबला करना मानों जान-बूझ कर काल के गाल में जाना है तब उन्होंने सोच-विचार कर सुलह कर ली । सुलह हो जाने पर छत्रसाल ने बाजीराव से पन्ना में भेंट की। छत्र साल ने बड़े भक्तिभाव के साथ उनका स्वागत किया।

🔶बुन्देल प्रभु छत्रसाल ने अपने राज्य का कुछ भाग बाजीराव को नज़र किया। इतना देने पर भी दानी छत्रसाल को सन्तोष न हुआ। उसने मरते समय अपने राज्य के तीन भाग किये और बाजीराव को पुत्र के जैसा मान कर एक करोड़ आयका एक भाग उन्हें जागीर में दे दिया । बाजीराव ने इस भाग के तीन हिस्से करके तीन सूबेदार नियत किये । पहले भाग पर गोविन्द पन्त बुन्देल को नियत किया; और सागर, गुलसराय और जालौन इत्यादि ४०लाख का इलाका उनके अधिकार में दिया । दूसरा भाग बाँदा और कालपी प्रान्त-४० लाख का-शमशेर बहादुर के सिपुद हुआ | बाकी २० लाख रुपये का झाँसी-प्रान्त नारोशंकर मोती वाले के अधीन हुआ । इस प्रकार तीन सूबेदार नियत करके बाजीराव दक्षिण को चले गये।

🔶सन् १७५६ ईस्वी में झाँसी के पूर्वाधिकारी गुसाइयों ने राज विद्रोह कर सूबेदार को अपने अधीन कर लिया । जब यह बात पेशवा को मालूम हुई तब उन्होंने रघुनाथ हरी नेवालकर नामक एक बुद्धिमान और बहादुर पुरुष को झाँसी का सूबेदार नियत करके दक्षिण से बुन्देलखंड को भेजा । रघुनाथ हरी ने झाँसी में आकर गुसाइयों का मानमर्दन किया । पेशवाओं का राज्य झाँसी में फिर से उत्तमता-पूर्वक स्थापित हुआ । जब यह समाचार पेशवा को पूने में विदित हुआ तब उन्होंने प्रसन्न होकर झांसी की सूबेदारी रघुनाथ हरी को वंश-परम्परा के लिए दे दी ।


🔶गुसाईं के शरण आने पर रघुनाथ हरी ने उसे १० हजारकी जागीर वंश-परम्परा के लिए दी ; यह जागीर अब तक उसके वंशजों में क़ायम है । रघुनाथ हरी ने झाँसी के स्थायी सूबेदार होने पर बुन्देलों से राज्य रक्षणार्थ बहुत सी सेना भी एकत्रित की जिन गुसाइयों ने पहले गदर मचाया था उनके चार मठ-आनंत, आभात, आखात और आखात और नागा-थे ; इसमें से हर एक में एक-एक हज़ार आदमी रहते थे और हर एक आदमी को भोजन के लिए चार-चार रुपये मासिक मिलते थे। उन लोगों से काम केवल इतना ही लिया जाता था कि जब कभी लड़ाई की जरूरत पड़े तब वे गुसाइयों की सहायता करें।

*🔶रघुनाथ हरी ने अपने बुद्धि-बल और कौशलसे इन सब को तितर-बितर करके सारा स्थान झाँसी प्रांतमें मिला लिया । बुन्देल- खंड में महाराष्ट्रीयों को राज्य-मर्यादा बढ़ाने में, रघुनाथ हरी के भाई लक्ष्मणराव और शिवराम भाऊ ने बड़ी सहायता की । यही रघुनाथ हरी हमारी चरित-नायिका श्रीमती लक्ष्मीबाई के भतृ वंशके मूल पुरुष हैं। इन्होंने बुंदेलखंड में महाराष्ट्रीयों की विजय-ध्वजा स्थापित करके यह सिद्ध कर दिया कि मरहठों में कितना धर्माभि- मान और तेजस्विता है।

🔷आगे की कड़ी दूसरे भाग में मिलेगी


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लेखक ::- डॉ. एस कुमार

 
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